नेगेटिव से पॉजिटिव कोरोना
14 दिन की आइसोलेशन में रहने के बाद सूरज अपनी corona नेगटिव की रिपोर्ट हाथ मे लेकर अस्पताल के रिसेप्शन पर खड़ा था।
आसपास कुछ लोग तालियां बजा रहे थे, उसका अभिनंदन कर रहे थे। एक जंग जितने के सामान था ये अनुभव उसके लिए।
लेकिन सूरज के चेहरे पर उसकी उदासी साफ़ दिख रही थी। उसका मन बहुत परेशान था।
अब उसे अपनी माँ की याद आ रही थी। क्योंकि इंसान चाहे कितना भी बड़ा हो जाए। दुःख के समय में माँ ही याद आती है। वही जाके सुकून मिलता है।
लेकिन आजकल के विलासिता और भागदौड़ की जिंदगी में हम माँ को भी भुला देते है। और पत्नी बच्चो में मस्त हो जाते है।
सारे रास्ते उसे माँ का चेहरा याद आता रहा।
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“आइसोलेशन” नामक खतरनाक दौर का संत्रास
*न्यूनतम सुविधाओं वाला छोटा सा कमरा, अपर्याप्त उजाला, मनोरंजन के किसी साधन की अनुपलब्धता, ये सब था वहां। कोई बात नही करता था ना नजदीक आता था। खाना भी बस प्लेट में भरकर सरका दिया जाता था।*
कैसे गुजारे उसने *10 दिन वही जानता था।*
- बस! मन मे कुछ ठोस विचार और उस का चेहरा संतोष से भर गया।घर पहुचते ही स्वागत में खड़े उत्साही पत्नी, बच्चों को छोड़ कर सूरज सीधे घर के एक उपेक्षित से कोने के कमरे में गया, माँ के पावों में पड़कर रोया और उन्हें ले कर बाहर आया।
पिता की *मृत्यु के बाद पिछले 5 वर्ष से एकांतवास/ आइसोलेशन भोग रही माँ से कहा की आज से तुम हम सब एक साथ एक जगह पर ही रहेंगे।*
माँ को लगा बेटे की ” नेगटिव रिपोर्ट ” उन की ” जिंदगी की पॉजिटिव रिपोर्ट ” हो गयी है।
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