Sachcha-Lakshmi-Poojan | सच्चा लक्ष्मी पूजन

sachcha-lakshmi-poojan | सच्चा लक्ष्मी पूजन
कल दीपावली का शुभ दिन था ,सेठ द्वारका प्रसाद जोर शोर से दीपावली की तैयारियों में लगे हुए थे, , “पंडित जी ने गोदाम पर दीपावली पूजा का सुबह 6:00 बजे का मुहूर्त बताया है! तुम सारी तैयारी अभी से कर लो”
द्वारका प्रसाद जी दुकान घर आते ही अपनी पत्नी से बोले।
“अरे वाह !!आज तो आप बड़ी जल्दी घर आ गए!”….. पत्नी बोली ..
“हां भई! मैं तो आ गया , लेकिन सारा काम काज मुनीम राम लाल के भरोसे छोड़ कर आया हूं। आखिर कल की महालक्ष्मी पूजा की तैयारियां भी तो करनी थी ,अभी तो बाजार से सारा सामान लाना है ।”
पत्नी बोली ….”पूजा की बाकी सामग्री तो घर पर ही उपलब्ध हो जाएगी। आप अभी बाहर जाओगे तो फूल मालाएं ले आना।”
सेठ द्वारका जी का रोज का नियम था , कि वो शाम की सैर को जरूर जाते थे , डॉक्टर ने जो कह रखा था .. और उनके साथ रोज पड़ोस वाले शर्मा जी जाते थे , ये दोनों का रोज का नियम था . , तो उन्होंने सोचा चलो घूम भी आते है और बाजार का जो काम है वो भी कर आते है .
सेठ द्वारका प्रसाद जी ने तुरंत वस्त्र बदले और पड़ोसी शर्मा जी को आवाज लगा शाम की सैर पर निकल गए।
द्वारका जी जैसे ही घूमने बाजार कि और मुड़ने लगे “द्वारका जी, आज पैर बाजार की तरफ कैसे मोड़ लिए?”
रास्ते की ओर बढ़ते देख शर्मा जी ने पूछा।
“बस जरा यूं ही, कुछ फूल मालाएं खरीदनी हैं।”
बाजार में फूल मालाओं की पक्की दुकानों के अलावा , कई लोग जमीन पर टोकरिया लिए भी फूल मालाये भी बेच रहे थे, शायद त्यौहार पर कुछ कमाई कि आस में …..
दो तीन जगह माल मोलभाव करने के बाद द्वारका जी को निगाह अचानक एक कोने में बैठी छोटी सी टोकरी लिए चौदह पंद्रह साल की लड़की पर पड़ी…..उनके कदम उधर ही चल पड़े .
पक्की दुकान वाले मौके के हिसाब से पैसे लगा रहे थे , और एक रुपया भी कम नहीं कर रहे। यही सोच कर वह उस लड़की के पास पहुंचे।
उस की टोकरी में गिनती की मालाएं और फूल थे। शायद आसपास की दुकानों से ही सस्ते भाव में खरीद लाई थी।
“यह गेंदे की माला कितने की दी?”
बाबूजी ₹20 की है।
“और गुलाब की माला?”
“₹50 की है।”
“इतना महंगा लगा रही है! देखती नहीं ऐसी मालाएं 10- 10 रुपए में मिल रही है।….सेठ जी झूठ बोले ..जबकि वह फूल माला 25 और 55-60 रुपए से काम नहीं थी ……अब बोले … सही लगा , सारी खरीद लूंगा।” उन्होंने आंखों ही आंखों में बची हुई मालाओं को गिनते हुए कहा।
द्वारका जी को स्वयं की ओर आते देख लड़की की आंखों में आई जो उम्मीद कि चमक थी …वो अब बुझ गई।
मायूस होकर बोली …..”बाबूजी ₹15 की तो मेरी खरीद ही है गुलाब की माला 40 में लाई हूं। कुछ तो मेरे लिए भी बचना चाहिए ना।” उसके शब्दों में बेबसी थी।
“रहने दे! रहने दे! झूठ मत बोल।” कहते हुए द्वारका जी ने पन्द्रह हजारे की मालाएं और तीन गुलाब की मालाएं अलग की। अब टोकरी में मात्र दो गेंदे की और एक गुलाब की माला ही शेष बची थी।
“बाबूजी यह तीनों मालाएं भी ले लीजिए।”
“देखती नहीं? उनके फूल मुरझा गए हैं !इन्हें लेकर क्या करूंगा?”
और फिर द्वारका जी ने हिसाब करते हुए 15 रुपए गेंदे की माला और रुपए 40 गुलाब की माला का हिसाब लगाकर रुपए पकड़ाए।
अब वो लड़की ….घबराकर वह कुछ देर इधर-उधर देखती रही । फिर गहराते अंधेरे का आभास कर और किसी अन्य ग्राहक को न आते देख भरे मन से मालाएं कागज में पैक करने लगी।….कि मेरे को क्या बचेगा …..३ माला का नुक्सान हो गया …जो बिकी वो भी बिना किसी मुनाफे के …..
“हम थोड़ी देर में घूम कर आते हैं फिर यह मालाऐं तुझ से ले लेंगे । कहते हुए द्वारका जी शर्मा जी का हाथ पकड़ आगे बढ़ लिए।
“इतनी मालाओं का क्या करोगे द्वारका जी?” शर्मा जी ने पूछा ……
“शर्मा जी ! कल तीन जगह पूजा होनी है और इतनी सस्ती मालाएं मुझे कहीं नहीं मिलने वाली।”
शर्मा जी ने आते वक़्त , कुछ और काम बता दिया और उसके चक्कर में दोनों ऐसे उलझे कि लौटते वक्त फूल मालाएं लेना भूल गए।….अब द्वारका जी घर आये ..पत्नी से बोले खाना लगा दो , खाना भी खा लिया …..और फूल माला की बात बिलकुल भूल गए …… खाना खाने के बाद पत्नी ने द्वारका जी को उलाहना दिया।
“मैंने तो पूजा की सारी तैयारी कर ली किंतु कहने के बावजूद आप फूल माला लेकर नहीं आए।”
क्या मालाएं?? अरे बाप रे!!…….द्वारका जी ..एक दम बोले…..
अब उन्होंने पत्नी को सारा किस्सा बताया। फिर गाड़ी लेकर तुरंत रवाना होने लगे ।
“रहने दो ! अब तुम्हें वहां कौन मिलेगा? कल सुबह जल्दी ही मंदिर से मालाएं खरीद लेंगे।” पत्नी ने उन्हें रोका।
“उम्मीद तो मुझे भी बिल्कुल नहीं है किंतु एक बार प्रयास तो करके देख लेता हूं।” कहते हुए द्वारका जी कर लेकर चल दिए ।
रात के 9:00 बज चुके थे। बाजार में कुछ दुकानें अभी भी खुली थी किंतु अधिकतर फूल माला लेकर बैठने वाले जा चुके थे।
द्वारका जी ने गाड़ी रोकी देखा वह बहुत अँधेरा था…और उस अंधेरे कोने की ओर बढ़े जहां से उन्होंने मालाएं खरीदी थी।
वो लड़की ..अभी भी टोकरी लेकर वहीं बैठी थी।
लड़की रोते रोते बोली……..”बाबूजी आप इतनी देरी से आए हैं! आपको पता भी है मेरा घर कितनी दूर है। मेरी मां घर पर भूखी होगी और पता है यहां पर पुलिसवालों और बदमाशों ने मुझे कितना परेशान किया।”
“मुझ पर चिल्ला रही हो। इतना ही था तो चली जाती।”
“ऐसे कैसे चली जाती? आखिर आपकी अमानत जो मेरे पास थी।”
द्वारका जी स्तब्ध रह गए। कुछ क्षण बाद शब्द बटोर कर बोले।
“तो क्या हुआ? अगर मालाऐं ले भी जाती तो मेरे क्या फर्क पड़ता ?”
“आपके फर्क नहीं पड़ता, बाबूजी! हमारे को फर्क पड़ता है। अगर मैं आपको यहां पर नहीं मिलती तो क्या आप कभी सड़क पर बैठकर काम करने वाले हम जैसे छोटे लोगों का विश्वास करते? आप हमें चोर समझते और फिर कभी हमसे नहीं खरीदते। मां ने सिखाया है अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए….और गलत तरीके से कमाया हुआ रो किसी को धोका देकर कमाया हुआ पैसा…कभी सुख नहीं देता …।”
अब सेठ जी बोले……..”और अगर मैं रात भर नहीं आता तो?”
“मैं घंटे भर और इंतजार करती फिर आपके नाम से मंदिर में मालाएं चढ़ा देती।”
द्वारका जी स्तब्ध खड़े रह गए…लड़की के शब्द उनको अंदर तक कचोट रहे थे….की मैं क्या किया..मैं तो एक छोटी से देवी सामान लड़की को धोखा दे रहा था.कम पैसे देकर …अब तो द्वारका जी की जबान जैसे अटक गई …. उनके शब्द अब कहीं खो गए थे। वे कुछ देर उसकी ओर अपलक देखते रहे। फिर उन्होंने एक माला निकालकर उसके गले में डाली, लड़की के हाथ में पांच सौ का नोट पकड़ाया फिर माला का पैकेट गाड़ी की पिछली सीट पर रखीं, टोकरी डिक्की में रखी और उसका हाथ पकड़ सामने स्थित रेस्तरां में ले गए …उसके शब्द…..”मेरी माँ घर पर भूखी होगी…”….उन्हें खाये जा रहे थे……वह जाकर उन्होंने खाना पेक करवाने का आदेश दिया।
लड़की ने बहुत कहा …लेकिन द्वारका जी नहीं माने…उनकी आँखे नम थी…. लड़की का सारा विरोध द्वारका जी के आगे न चल पाया …
“चल मैं तुझे घर तक छोड़ कर आता हूं।” खाना पैक होने के बाद द्वारका जी बोले…
“बाबूजी ! आप यह क्या कर रहे हैं? मैं अपने आप चली जाऊंगी।” उसने फिर विरोध किया।
“बेटा साक्षात लक्ष्मी को भोग लगा रहा हूं। मना मत कर। मेरी लक्ष्मी पूजा तो आज ही हो गई है।”…..
मैं तो कल लक्ष्मी पूजन की तैयारी कर रहा था…. लेकिन मेरी तो आज ही साक्षात् लक्ष्मी जी पूजन स्वीकार कर लिया..”…..मन ही मन रास्ते भर सोच रहे थे….
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