रिक्शा चालक का बेटा बना आईएएस अधिकारी IAS officer | riksha-wala-son-become-ias-officer
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GOVIND JAISWAL एक ऐसे ही व्यक्ति है।
क्या आप सोच सकते है की रिक्शा चालक का बेटा आईएएस अफसर
( IA S OFFICER ) बन सकता है। नामुमकिन लगता है, ना।
लेकिन ऐसा हुआ है।
जी हां। उस रिक्शेवाले के बेटे को सब देते थे ताना; लेकिन उसने IAS बन दिया था जवाब।
भारत में IIT ,IIM और IAS तीनो के तीनो प्रोफेशन बेजोड़ है career के नजरिये (point of view ) से भारत में इन तीनो का कोई भी मुकाबला नही है।
IIT,IIM, और IAS. तीनो में IAS अफसर की वैल्यू सबसे अधिक है । एक आईएएस अफसर की बात ही अलग है।
लाखों परीक्षार्थी IAS officer बनने की चाह में हर साल Civil Services के exam में APPEAR होते हैं।
लेकिन इन में से कितने मुश्किल से 0.025 percent लोग ये उससे भी कम लोग IAS officer बन पाते हैं । इसी से आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि IAS एग्जाम क्लियर करना कितना मुश्किल है
इस रिक्शेवाले ने बेटे को बनाया था IAS, दामाद ढूंढकर लाया था IPS बहू
और ऐसे में अगर किसी के पास सही कोचिंग का , बुक्स का, तथा अन्य FACILITIES का भी भाव हो और तब भी कोई इस exam को clear करता है उसके लिए अपने आप ही सर झुक जाता है।
उसके लिए मन में एक अलग से RESPECT वाली फीलिंग आ जाती है । और जब ऐसा करने वाला किसी बहुत ही साधारण परिवार से हो जिसका पिता रिक्शा चलता हो , फिर तो बात ही क्या।
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आज CYL (CHANGEYOURLIFE ) पर हम बात करेंगे एक ऐसी ही शख्सियत की जो हज़ारो परेशानियों होने के बावजूद भी अपने संकल्प , दृढ निश्चय और अपनी मेहनत के बल पर IAS अफसर का मुकाम हासिल कर सका।
IAS Officer Struggle and Success Story in हिंदी
Govind Jaiswal के पिता जी एक साधारण से परिवार में एक रिक्शा चला कर अपना परिवार को मुश्किल से चलाते थे।
बनारस के एक छोटे से मोहल्ले में , एक 8 by 12 के कमरे में रहने वाला गोविन्द का परिवार बड़ी मुश्किल से अपना गुजरा कर पाता था । ऊपर से ये कमरा किराये का था।
उनका घर एक ऐसे भीड़ भाड़ वाली जगह में था जहा बहुत शोर था आस पास।
पास में माकन तथा फैक्ट्री थी , और वह सारा दिन उनकी मशीनो व् जनरेटर का शोर होता रहता था। लेकिन क्या करे मजबूरी थी। वह पड़ना तो क्या , आपस में नार्मल बात करना भी मुश्किल होता था।
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इस छोटी सी जगह में Govind, उनके माता -पिता और दो बहने रहती थीं । पर गोविन्द का सारा ध्यान शुरू से ही पढाई पर था।
IAS officer के सफलता की कहानी
गोविन्द पढ़ाई में शुरू से ही बढ़िया थे। तो वो class 8 से ही tuition पढ़ाने लगे और अपनी पढाई और किताबों का खर्चा निकालने लगे ।
बचन से ही गोविन्द गरीबी और अशिक्षा के माहौल में पले बड़े थे। और उनको ये ही सुनना पड़ता था कि ” चाहे जितना पढ़ लो , चलनी तो रिक्शा ही है। ” लेकिन उनका इरादा पक्का था।
उनका कहना है कि “मैं जब भी demoralize होता । तो अपनी family के बारे में सोचने लगता। , मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था। मुझे कैसे भी अपने परिवार को ऊपर उठाना था। ”
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वह कानो रुई लगा कर पढ़ाई करते थे ताकि आस – पास के शोर से बचा जा सके , और जब disturbance ज्यादा होती तब Maths करते रहते थे। और जब कुछ शोर काम होता था तब अन्य subjects पढ़ते ।
रात रात भर मोमबत्ती, लालटेन में पढ़ाई करते थे । उनके इलाके में 12 – 12 घंटे बिजली कटौती रहती।
शुरू से हो वह school topper थे और Science में उनका दिमाग ज्यादा चलता था। इसलिए Class 12 के बाद कई लोगों ने उन्हें Engineering करने की सलाह दी ,।
एक बार तो उनके मन में भी एक बार यह विचार आया , लेकिन entrance एग्जाम की फीस ही 500 रुपए थी। जो उनके लिए बहुत बड़ी रकम थी, तो उन्होंने यह विचार मन से त्याग दिया।
उसके बाद उन्होंने BHU में graduation में एडमिशन लिया। जहा की फीस केवल 10 रुपए थी।
Govind साथ साथ IAS एग्जाम की तैयारी भी कर रहे थे। अगर अफसर बन जाते तो परिवार की सारी परेशानियो को दूर कर पाते।
वह final preparation के लिए Delhi चले गए लेकिन तभी उनके पिता के पैर में एक गहरा घाव हो गया और वह रिक्शा चलने में असमर्थ हो गई। परिवार की सामने रोजी रोटी का संकट आन पड़ा।
अब गोविन्द की पढ़ाई रुक गई, लेकिन उनके पिता ने अपनी एक मात्र सम्पत्ती , एक छोटी सी जमीन को मात्र 30,000 रुपये में बेच दिया ताकि Govind अपनी पढ़ाई जारी रख सके।
Govind ने भी उन्हें निराश नहीं किया , 24 साल की उम्र में अपने पहले ही attempt में ( 2006 batch ) 48 वाँ स्थान प्राप्त किया।
474 सफल candidates में उनका स्थान 48 वाँ था। यह करके उन्होंने अपने परिवार की ज़िन्दगी हमेशा -हमेशा के लिए बदल दी ।
उन्होंने mains के लिए Philosophy और History choose किया ,जबकि उनका Maths पर अच्छा command था।
गोविन्द जी के अनुसार , इस दुनिया में कोई भी subject कठिन नहीं है, बस आपके अंदर will-power होनी चाहिए।
साधारण स्कूल में पड़ने के कारण उन्हें अंग्रेजी का अधिक ज्ञान नहीं था ,
गोविन्द जी के अनुसार “ भाषा कोई परेशानी नहीं है , बस आत्मविश्वास की ज़रुरत है । मेरी हिंदी में पढने और व्यक्त करने की क्षमता ने मुझे achiever बनाया। अगर आप अपने विचार व्यक्त करने में confident हैं तो कोई भी आपको सफल होने से नहीं रोक सकता ।कोई भी भाषा inferior या superior नहीं होती।
ये महज society द्वारा बनाया गया एक perception है। भाषा सीखना कोई बड़ी बात नहीं है – खुद पर भरोसा रखो । पहले मैं सिर्फ हिंदी जानता था, IAS academy में मैंने English पर अपनी पकड़ मजबूत की । हमारी दुनिया horizontal है —ये तो लोगों का perception है जो इसे vertical बनता है , और वो किसी को inferior तो किसी को superior बना देते हैं ।”
गोविन्द जी की यह सफलता दर्शाती है कैसी भी परिस्थितिया क्यों ना हो यदि दृढ संकल्प हो , पक्का इरादा हो , और मेहनत से जुटे रहे तो कुछ भी पाना मुश्किल नहीं है।
सफलता आपके कदम चूमती है।
5 साल पहले उन्होंने IAS अफसर का मुकाम हासिल किया था। लेकिन ऐसा लगता है , जैसे ये कोई कल ही की कहानी हो।
उनके जीवन संघर्ष की कहानी हम सबके किया प्रेरणाप्रद है।
आप किसी भी परिवार से है, या कोई भी परिस्थितिया है ,तो क्या हुआ , आप बस हिम्मत जुटाइये , और तैयार हो जाइये समाज में अपने अलग मुकाम बनाने के लिए ,अपनी अलग पहचान और हस्ती बनाने के लिए ,चाहे आप कहीं भी रहते है, चाहे शहर या गाँव आप अगर चाहे तो क्या नहीं कर सकते ,हमारा इस आर्टिकल बहुत सी जिन्दगियो को बदल देगा , शायद आपकी भी ,ऐसी हम उम्मीद करते है
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