बेटी के लिए जूते खरीदने तक के नहीं थे पैसे, आज खड़ी कर दी शूज़ इंडस्ट्री |unable to buy shoes for her daughter now shoe industrialist
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कहानी पद्म श्री माँ की| कभी बेटी को नहीं दिला पाईं थीं नए जूते| आज चला रहीं शूज़ इंडस्ट्री । Padma Shri Muktamani is running shoes industry, best motivational women story | unable to buy shoes for her daughter now shoe industrialist
कहते है ना , वक़्त का कुछ पता नहीं , वक़्त बदलते देर नहीं लगती , वक़्त किसी का नहीं होता, आज तेरा है , तो कल मेरा होगा, जी हां ऐसी ही एक कहानी है ,पद्म श्री बिज़नेसवुमन मुक्तामणि मोइरंगथेम की , उन्होंने वो समय भी देखा , जब ढंग से खाने तक का इंतज़ाम नहीं था, वो जिंदगी में वो भी हासिल किया की राष्ट्रपति से पदमश्री तक हासिल किया
एक समय वो था, कि गरीबी की वजह से वो अपनी बेटी के लिए जूते नहीं खरीद पाईं, और एक वो समय आया कि उन्होंने अपनी खुद कि शू इंडस्ट्री खड़ी कर दी, वो वो मुकाम हासिल किया कि, देश को उन्हें पर नाज हुआ और देश का एक राष्रपति अवार्ड उनको देना पड़ा।
कहते है है ना, कि कर खुदी को बुलंद इतना, कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।
It means , that make or get that place near god, that god himself has to ask you , before everything, that what’s your opinion
एक बार क्या हुआ कि , उनकी बेटी के जुटे टूट गए , तो उनके पास नए जुटे खरीदने के पैसे तो थे नहीं, तो उन्होंने क्या किया कि , पूराने जूतों की सोल पर ही ऊन से नया जूता बुन कर , खड़ी कर दी अपनी शूज़ इंडस्ट्री कि राह और साथ ही बना ली पद्म श्री तक की राह भी।
उन्हें क्या पता था, कि उनका यह छोटा सा मजबूरी में किया गया प्रयोग , एक दिन उन्हें ये दिन भी दिखायेगा
यह कहानी है एक माँ की, मणिपुर की रहनेवाली पद्म श्री बिज़नेसवुमन ( business women ) मुक्तामणि मोइरंगथेम की। लगभग तीन दशक पहले, 1989 तक अपने क्षेत्र की दूसरी महिलाओं की तरह ही वह भी अपने बच्चों के लिए घर पर ऊनी मोजे और मफलर बुनतीं, खेतों में काम करती थीं और शाम को सब्जियां भी बेचती थीं।
मणिपुर के काकचिंद नमक एक छोटी सी जगह पर रहने वाली मुक्तामणि,रात को भी घर खर्च में कुछ एक्स्ट्रा पैसे कमाने की चाह में मुक्तामणि झोले और हेयरबैंड्स बुना करती थीं। इसके बावजूद भी घर खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था और घर के हालात बेहद खराब थे, जैसे-तैसे घर का खर्च चल रहा था। एक बार उनकी बेटी के जूते खराब हो गए, तब उन्होंने जूते के ऊपरी हिस्से को हटाकर, सोल के ऊपर ऊन से जूता बुन दिया। स्कूल में उनकी बेटी की टीचर को ये जुते इतने पसंद आए कि उन्होंने अपनी बेटी के लिए भी ऑर्डर दिया।
कुछ समय बाद, वहां तैनात सेना के जवानों ने गश्त के दौरान , उनकी बच्ची के पैरों में हाथ से बुने जूते देखे और उन्होंने भी अपने बच्चों के लिए जूतों का ऑर्डर दिया और यहीं से हाथ से बुने इन जूतों को मणिपुर के बाहर भेजने का रास्ता मिल गया। और आर्डर आते गए ।
कुछ समय बाद , काम बढ़ता देख मोइरंगथेम ने 1990 में अपनी खुद की कंपनी ‘मुक्ता शूज़ इंडस्ट्री’ की शुरुआत की और उन्होंने अपने बनाये जूतों को नई दिल्ली के प्रगति मैदान में ट्रेड फेयर ( एक व्यापार मेला ) में exhibition ( प्रदर्शनी ) लगा , और वहां उन्होंने केवल पांच दिनों में 1500 जोड़ी जूते बेचे और वह उनको कुछ ऑर्डर्स भी मिले , और आज ये स्थिति है कि , अब उनके प्रोडक्ट्स जापान, रूस, सिंगापोर और दुबई जैसे देशों में भी जाने लगे हैं।
आज उनकी कंपनी में लगभग 20 लोग काम कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर महिलाएं हैं। मोइरंगथेम, इस काम को और बढ़ाना चाहती है ,
और उनकी इच्छा एक ट्रेनिंग सेंटर खोलने कि भी है , जहा वह युवाओं को यह कला सिखाकर स्वरोजगार से जोड़ सके , और उनके अंदर स्किल development कर सके , ताकि इस कला को विलुप्त होने से बचाया जा सके। मोइरंगथेम को उनकी इसी सोच और गरीब महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयासों ने पहचान दिलाई और
उन्हें उनकी कला के लिए साल 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
मुक्तामणि अगर ये यह कर सकती हैं, तो आप भी कर सकते/सकती हैं…बस अपने होंसले बुलंद रखिये और , अपने हुनर को पहचानें और पूरे विश्वास के साथ बढ़ाएं कदम, सफलता ज़रूर मिलेगी।
अगर आप महिला है तो आप अपने को कमजोर ना समझे , जो काम आदमी नहीं कर पाते , कई बार वो काम महिलाये आराम से कर लेती है। अगर आपका भी कोई सपना है , तो रुके मत ,हार मत माने , अगर अपने ऊपर विश्वास हो तो कोई क्या नहीं कर सकता।
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