Amazing : Stroy-of-momos-king-came-in-search-of-job | कैसे बने मोमोस किंग, काम की तलाश में गढ़वाल से आए थे लखनऊ,आज 4 रेस्टोरेंट्स के हैं मालिक

By | March 18, 2022

कैसे बने मोमोस किंग, काम की तलाश में गढ़वाल से आए थे लखनऊ,आज 4 रेस्टोरेंट्स के हैं मालिक | Amazing : Stroy-of-momos-king-came-in-search-of-job

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साल 1997 में काम की तलाश में उत्तराखंड के एक गांव से लखनऊ आए रंजीत सिंह ने कई छोटे-छोटे काम करने के बाद, साल 2008 में एक ठेले से खुद के बिजनेस की शुरुआत की थी। आज लखनऊ में उनके चार रेस्टोरेंट्स हैं।

 

यह कहानी है उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में रहने वाले रणजीत सिंह की, जिन्होंने कोई भी काम छोटा नहीं समझा , जो काम मिला वो किया, और वैसे भी उनके परिवार के हालत ऐसे नहीं थे की वो, कुछ बड़े से शुरू कर पाते , लेकिन अपनी मेहनत और लगन के बल पर वो आज 4 रेस्टॉरेंट के मालिक है , और करोड़ो का टर्नओवर भी कर रहे है ।

अगर आप में भी कुछ बड़ा करने की चाह है,आपका काम छोटा हो या बड़ा, अपने काम के प्रति जूनून और आपकी मेहनत ही आपको सफल बनाती है। रणजीत सिंह जी कभी लखनऊ में ठेले पर मोमोज और नूडल्स बेचा करते थे, लेकिन आज अपनी मेहनत के बल पर वह चार रेस्टोरेंट के मालिक हैं।

रंजीत सिंह लखनऊ के मशहूर रेस्टोरेंट ‘नैनीताल मोमोज’ के मालिक है। और उनकी चैन ऑफ़ रेस्टॉरेंट्स है। और आज रंजीत सिंह के ‘नैनीताल मोमोज’ नाम से लखनऊ शहर में चार आउटलेट्स हैं। वहीं इलाहाबाद, दिल्ली और गोवा में भी, एक-एक फ्रेंचाइजी रेस्टोरेंट हैं, जिसे उन्होंने अपने रिश्तेदारों को ही फ्रेंचाइजी दी हुई है ,

लेकिन वो आज इस मुकाम पर पहुंचे है इसकी कहानी 23 साल पहले से शुरू होती है, उन्होंने जिंदगी में हर तरह के उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। रणजीत सिंह जी के पिता जी ने उन्हें गांव से आते हुए एक ही बात कही थी

की,शहर में कोई छोटा काम भी मिले तो उसे ख़ुशी-ख़ुशी मन लगा कर करना और कभी भी कोई गलत काम मत करना और ईमानदारी से करना  ये उनकी जिंदगी मूल मंत्र बन गया था। और आज कभी बेइमानी न करने और किसी भी छोटे से छोटे काम से पीछे न हटने की वजह से वो इतने सफल हुए है।

बचपन बहुत गरीबी में गुजरा

रणजीत सिंह जी का सम्बन्ध उत्तराखंड के छोटे से गांव नलाई तल्ली से है , वह उनकी खेती की थोड़ी से जमीन थी। और उनके पिता गांव में खेती किया करते थे। उनके पिता के पास इतनी ज्यादा जमीन नहीं थी कि परिवार का गुजारा चलाया जा सके। इसलिए वह दूसरे के खेतों में मजदूरी का काम भी किया करते थे।

रंजीत जो अपने तीन भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। को बचपन से ही बहुत समझदार थे। और उन्हें ऐसा लगता था कि यदि घर पर रहे तो घर की आर्थिक स्थिति को बदलना बहुत मुश्किल है। और उन्होंने कड़ा निर्णय लिया और शहर में काम करने कि सोची

रणजीत सिंह के पिता के लिए तीन बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना उनके लिए मुश्किल काम था। इसलिए रणजीत सिंह ने खुद ही हाई स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ने का निर्णेय लिया क्योकि उन्होंने बचपन से घर के हालात देखे थे और वह जल्दी से कुछ करके घर कि माली हालत में अपना योगदान देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने हाई स्कूल पास करने के बाद खुद ही अपने बुआ के बेटे से बात की और साल 1997 में उनके साथ लखनऊ आ गया।

होटल में की नौकरी

रणजीत सिंह को अपनी पहली नौकरी एक कोठी में हेल्पर की मिली और वो भी उनके बुआ के बेटे की मदद से , लेकिन रंजीत ने मन लगा कर काम शुरू कर दिया। लेकिन वहां इतने कम पैसे मिलते कि उनके सारे पैसे अपने पर ही खर्च हो जाते थे , और गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था। घर पर पैसे भेजना बहुत मुश्किल से ही हो पता था। फिर भी उन्होंने दो साल तक कोठी में हेल्पर का काम किया।

जहा वो काम करते थे , उस कोठी के मालिक का एक गेस्ट हाउस भी था । एक बार उन्हें किसी काम से गेस्ट हाउस में जाना पड़ा। वहां जाकर उन्होंने देखा कि वेटर को खाना होटल में मुफ्त में मिलता है और ग्राहक टिप में पैसे भी देते है। और कुल मिलकर अच्छे पैसे हो जाते है। अब उन्होंने क्या किया कुछ दोस्तों की पहचान से वेटर की नौकरी ढूंढ ली।

तो अब रंजीत अब हेल्पर की नौकरी छोड़कर वेटर का काम करने लगे। यहां एक तो खाने का कोई खर्च नहीं होता था , दूसरा टिप कि इनकम एक्स्ट्रा हो जाती थी , तो जब उनकी आमदनी बढ़ी और अब वह कुछ पैसे घर भी भेजने लगे। लेकिन एक दिन एक हादसा हो गया जो उनको अंदर तक झकझोर गया

एक दिन ,उनके एक साथी वेटर का काम करने के दौरान हाथ जल गया। मालिक ने उससे सहानुभूति तो दूर बल्कि उसे नौकरी से यह कह कर निकाल दिया कि वह जले हाथ से कैसे दूसरों को खाना परोसेगा। सैलरी क्या फ्री की है , अब इस हादसे के बाद उन्होंने भी सोचा की कोई नया काम ढूंढ़ना पड़ेगा।

अब रंजीत सिंह को खाना बनाना तो आ ही गया था तो उन्होंने खुद का टिफिन सर्विस का काम साल 2005 में शुरू कर दिया।
इसी बीच उनकी शादी भी हो गई थी। अब काम करने में उनकी पत्नी भी उनकी मदद करने लगी। टिफिन के काम में उनकी पत्नी रजनी सिंह भी उनका साथ दिया करती थीं। अब टिफ़िन का काम अच्छा चलने लगा वह दिन के 250 टिफिन बनाते थे।

कमाई भी अच्छी हो रही थी।लेकिन एक दिक्कत थी , लोग पैसे टाइम पर नहीं देते थे लेकिन उन्होंने कुछ सालों तक टिफिन बनाने का काम किया। लेकिन वह इससे भी परेशान होने लगे क्योंकि उन्हें हमेशा ही टिफिन के पैसे समय पर नहीं मिल पाते थे। छोटा काम था , महीने भर खाना खिलने के बाद भी उस खाने के पैसे न मिले तो आखिर क्या करते।

लेकिन कई लोग तो बार-बार याद दिलाने पर भी पैसे समय पर नहीं देते थे। जिससे उन्हें अगले महीने का राशन लेने में दिक्क्त होती थी। तो एक दिन उन्होंने इस काम को भी बंद करने का निर्णय लिया और खाने का ठेला शुरू करने का फैसला किया, जिससे कम से कम नकद कमाई तो हो।

पूड़ी सब्जी का ठेला शुरू किया।

पूड़ी-सब्जी का ठेला शुरू तो कर दिया लेकिन वो ज्यादा चला नहीं सुबह से शाम तक मेहनत करके भी महज 40 से 50 रुपये की कमाई होती थी। अब उन्हें लगने लगा की ये काम भी नहीं चलेगा। उन्होंने थोड़ा आसपास देखा , तो उन्हें लगा की लोगो की स्नैक्स ज्यादा पसंद है। तो उन्होंने अब चाऊमीन और मोमोस का काम शुरू करने की सोची , उन्होंने पूड़ी सब्जी की कमाई से जो 500 रुपए कमाए थे उससे ही चाऊमीन बनाने का सामान खरीदा।

ये काम अच्छा चला और पहले दिन ही 280 रुपये की कमाई हो गई । उन्हें मोमोस ज्यादा अच्छे बनाना आते था और उन्हें यकीन था कि मोमोस लोगो को ज्यादा पसंद आएंगे तो , उन्होंने नूडल्स के साथ मोमो बेचना शुरू किया लेकिन लोग बस नूडल्स खरीदते और उनके बनाए ज्यादातर मोमोज हर दिन बच जाया करते थे।मोमोज को दिन के आखिर में गाय को खिलाना पड़ता था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था की लोगो को मोमोस खाने या कम से कम एक बार टेस्ट करने के लिए कैसे प्रेरित करे।

उनकी पत्नी के एक आईडिया दिया जिसने उनके मोमो को भी लोगों के बीच लोकप्रिय बना दिया। एक बार नए साल के मौके पर उनकी पत्नी ने उन्हें कहा कि , आपके नूडल्स तो लोगो खाने आते ही है , तो आप नए साल पर एक ऑफर स्टार्ट करो और ग्राहकों को नूडल्स के साथ फ्री में मोमोज दो । अब लोगो को मोमोस का स्वाद भी पसंद आने लगा , और उसके बाद उनके मोमोस हिट हो गए और लोग मोमोज खरीदने भी आने लगे।

पहले रेस्टॉरेंट के मालिक बने

इस तरह उत्तराखंड के नूडल्स और मोमोस के स्वाद का जादू चल गया और अब रंजीत का काम तेजी से बढ़ने लगा। क्योकि लोग और लोगो को भी recommend करते थे तो अब उन्होंने स्टीम मोमो के साथ फ्राई मोमो भी बेचना शुरू किया। फ्राई मोमो ने तो कमाल कर दिया।…..फ्राई मोमो तो लोगों को इतने पसंद आने लगे कि वो रोज के दो से तीन हजार कमाने लग गए ,

जब काम अच्छा चलने लगा।उन्होंने अपने क्वालिटी और मेहनत में कोई समझौता नहीं किया तो उनकी पांच साल की कड़ी मेहनत रंग लायी और उन्होंने 2013 में लखनऊ के गोमती नगर में 15 हजार रुपये मासिक किराए पर एक छोटी सी दुकान ली। और अपना छोटा सा रेस्टॉरेंट स्टार्ट किया। आज उनकी उस दुकान का महीने का किराया एक लाख रुपये है।

नए इनोवेटिव(Innovative ) आइडियाज पर काम किया

उन्होंने नए नए आईडिया पर काम करना स्टार्ट कर दिया , पहले फ्राई मोमोस सुपर हिट थे , तो अब उन्होंने लोगों के टेस्ट को देखते हुए पहली बार शहर में तंदूरी मोमो बेचना शुरू किया और फिर ड्रैगन फ्राई, चीज, चॉकलेट जैसे स्वादों में भी मोमो को ग्राहकों के सामने पेश किए। , उनकी सफलता का मूल मंत्र था कि वो हर बार , हर ग्राहक से पूछते और अपने मोमोस में और सुधार करते रहते। (consumer feedback ) का ये सिस्टम काम किया और उनकी प्रसिद्धि बढ़ती गयी।

लोगों को उनके हाथों का स्वाद पसंद आता गया और उनका काम बढ़ता रहा। लोग दूर दूर से उनके मोमोस खाने आते थे तो ,तीन साल बाद 2016 में ग्राहकों की मांग से ही उन्होंने एक और दुकान शहर के दूसरे एरिया में किराए पर ली। , और अब क्युकि काम बढ़ गया था और ज्यादा लोगो काम करने वाले लोगो कि जरुरत थी तो उन्होंने अपने साथ अपने जीजाजी, छोटे भाई, बुआ के लड़के और अपनी पत्नी के भाई को भी बिज़नेस में शामिल कर लिया अब तो इसके अलावा भी उन्होंने तक़रीबन 35 लोगों को काम पर रखा है।

नैनीताल मोमो को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी

अब तो उन्होंने दो साल पहले उन्होंने नैनीताल मोमो को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में रजिस्टर भी करवा लिया है ।

लखनऊ के अपने रेस्टोरेंट बिज़नेस से उनका सालाना टर्नओवर इतना है कि अब वो अपने रेस्टोरेंट बिज़नेस से साल में तीन करोड़ रुपये की कमाई कर रहे हैं। हालांकि कोरोना के कारण काम में थोड़ी मंदी आ गई थी।

60 से ज्यादा किस्म के मोमोज़

आज वह 60 से ज्यादा किस्म के मोमोज़ वेराइटीज बना रहे हैं। ‘ग्राहकों को उनका तंदूरी मोमोज बहुत पसंद आता है।

रंजीत का खाली हाथ गांव से आकर , और फिर एक छोटे से ठेले से कई रेस्टॉरेंट के मालिक बनना और करोड़ो का टर्नओवर होना , ये बताता है कि मेहनत और लगन से आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं।

 

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