shocking : Pleasure-of-being-a-mother | क्या मैं सचमुच मां बन गयी

By | February 22, 2022

क्या मैं सचमुच मां बन गयी…???

Pleasure-of-being-a-mother | क्या मैं सचमुच मां बन गयी changeyourlife.in

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कविता के विवाह को पूरे 11 साल हो चुके थे अच्छा घर बार था, पति उसका पूरा ध्यान रखते थे, सास ससुर, 2 प्यारे देवर सजल और नीरज , भरा पूरा परिवार था , देवर उसको भाभी भाभी कहते नहीं थकते थे, वो भी उनको अपनों बच्चो सा ही प्यार करती थी . लेकिन उसकी जिंदगी में एक ही गम था . कविता को मां बनने का सुख नहीं मिल पाया . शादी के 11 साल बीत गए , कोई मंदिर ,कोई देवी , मनौती,व्रत उपवास सब किया पर निराशा के आलावा कुछ नहीं मिला…डॉक्टर ने भी कोई कमी नहीं बताई थी दोनों में फिर..पता नहीं किस पाप का फल मुझे ईश्वर ने दिया …यही सोच कर मन खराब किये रहती कविता ।

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समय के साथ उसके दोनों देवरों की शादी उसके सामने हुई …
और साल भर में दोनों की गोद में एक-एक बच्चा भगवान ने उनको दे दिया . !
घर- परिवार से तो उसे कोई किसी प्रकार का दुःख नहीं था , देवर और देवरानियाँ , उसको बहुत मन सम्म्मान देते , उससे पूछ कर ही सारा निर्णेय लिए जाते , लेकिन उसका गम उसको अंदर ही अंदर खाये जा रहा था . रोज रात ही उसकी आँखे यही सोच सोच के नम हो जाती और आंसुओं से तकिया गीला करते उसकी रात कटती…!

हालांकि पति कुछ कहते नही थे …पर जब शाम को घर आते ही भाइयो के बच्चों को लेकर व्यस्त हो जाते ..उन्हें गोद में लेकर खिलाने लगते तब कविता का मन बहुत ही कचोटता …! लेकिन वो कर भी क्या सकती थी . ???

ऐसा नहीं कि वो इन बच्चों से प्यार नहीं करती थी.. वो तो जान छिड़कती थी… उन पर, बहुत प्यार करती थी वो उनसे .
किन्तु मन का एक कोना बहुत उदास रहता था ….उसका ….!….क्योकि, जो उसके जीवन में जो कमी थी , वो तो थी ही , अपने बच्चो के बिना घर सुना सुना लगता था

समय पंख लगा कर उड़ रहा था …!इस बीच उसके मंझले देवर सजल का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया ।अब घर में छोटे देवर- देवरानी और उनकी छुटकी बेटी और वो और उसकी दुनिया बन गयी….! , पति के काम पर जाने के बाद वो छुटकी के साथ , उसका ललन पालन में , उसका ध्यान रखे में समय बिताती, देवरानी से ज्यादा छुटकी का ध्यान वो रखती , मानो वो उसी की जिम्मेदारी हो , या उसी की बेटी हो .

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समय बदला , अचानक उसे पता चलता कि छोटी देवरानी फिर से गर्भवती है। उसका मन फिर सूना हो गया ,जहाँ एक और खुशी थी तो वही मन में एक बार फिर अपनी कमी का अहसास तो हुआ पर उसने भगवान की इच्छा के आगे हथियार डाल दिये थे…!

एक दिन भोजन करते करते अचानक उसने सुना … देवरजी देवरानी से कह रहे थे “पूजा हम अपना दूसरा बच्चा बड़े भाभी-भैया को दे देते हैं..! कैसा रहेगा ?? देवरानी ने उस समय कोई खास प्रतिक्रिया दी, लेकिन कविता ने सुना तो वो धक्क से रह गयी ।क्या ऐसा होगा??मैं सचमुच में किसी बच्चे की मां की बन सकती हूँ???अपनी खुशी के रौ में वो देवरानी के चेहरे के भाव नहीं देख पाई..!

दूसरे दिन से वो अपनी देवरानी पूजा की और ज्यादा देखभाल करने लगी। कविता की खुशी को तो मानो पंख लग गए ….मानो वो खुद ही मां बन रही हो। उसने छुप- छुप कर नए मेहमान के लिए कपड़े- मोजा टोपा सब बना लिए…!

समय आया छोटी देवरानी के घर बेटे का जन्म हुआ ,किन्तु बच्चा मां की गोद में ही रहा… , किसी ने बच्चा उसको देने की बात तक नहीं छेड़ी, अब उसकी देवरानी के उदासीन व्यवहार ने उसका दिल एकदम तोड़ दिया। अभी भी उसके मन में कोई आस थी ,

शायद कुछ दिन बाद देवर जी कोई जिक्र छेड़ेंगे , लेकिन बची खुची उम्मीद भी उस दिन दिन टूटू गयी जब उसने अपने देवर को कहते सुना, “पूजा अगर हम बच्चा भाभी को दे देते तो क्या हर्ज था …मतलब साफ़ था की पूजा पहले ही बच्चा देने से मना कर चुकी थी .

अब देवरानी पूजा ने छूटते ही कहा ….. भई बच्चा रहेगा तो घर में ही , मेरे पास रहे या उनके … मैं पूरा पूरा अपने बच्चे को किसी को नहीं दे सकती…बस !

यही धराशायी हो गया सपना उनके माँ बनने का , उस समय कविता की वो हालत थी , कि जैसे यही धरती फट जाए और मैं उसमे समां जाऊ …!

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वो कर क्या सकती थी , पूरी रात रो रो कर बिताई , समय बदला अब कुछ दिनों बाद फिर खबर आई कि मंझली देवरानी भी मां बनने वाली है ..फोन पर खूब बधाई दी कविता ने…! मन बहुत रोया उसका ….पर ईश्वर को शायद यही मंजूर था और ईश्वर की इच्छा के आगे भला क्या हो सकता है…?

वो बहुत उत्साहित थी कि , बड़े देवर जी मंझली को यहाँ लेकर आएंगे और वो उसका बच्चा होने तक पूरा ध्यान रखेगी , लेकिन मंझली देवरानी को इस बार कुछ कॉम्प्लिकेशन होने के कारण डॉक्टर ने ट्रेवल करने मना कर दिया , वो वो वही रह गई , पूरा समय आयो ही नहीं , फिर एक रात खबर आई मंझली के बेटा हुआ है…

देवर सजल का फोन आया , बोला “भाभी आप सबको लेकर आ जाइए अगले हफ्ते फंक्शन रख रहे हैं बच्चे का…!”

अब बच्चे के लिए खिलोने, कपडे , सब उसी कि जिम्मेदारी थी , उसने बहुत मन से सब सामान बनाया, अच्छी तरह से सब सामान पैक किया, बहुत चाव था , देखते देखते यात्रा का दिन भी आ ही गया , सब ट्रैन से चल पड़े , उसने मन ही मन रोते- रोते उसने यात्रा पूरी की। छोटा देवर,उसके दोनों बच्चे, पति, सास सब थे साथ में …बस वो किसी के साथ नहीं थी ..! “मेरा जीवन तो निरर्थक हो गया भगवान तुमने मेरी कभी नहीं सुनी …! हर गुजरते मंदिर के आगे वो ऐसा बुदबुदाती…!

शाम तक वो सबके साथ मंझले के घर पर पहुंच चुकी थी…! लम्बा चौड़ा आयोजन…. खूब लोग- बाग गहमा-गहमी !

लेकिन उससे कोई ठीक से बात तक नहीं कर रहा था …! वो अलग अलग उदास और मायूस बैठी थी , कुछ औरतें कानाफूसी भी कर रही थी …पति भी आकर काम में रम गए थे । वो ही निठल्ली सी बैठी थी…! तभी एक महिला ने कहा “आप कविता जी हैं?”जी हां””चलिये आप”… कह कर वो औरत कविता को एक कमरे में ले गयी…वहां मंझली देवरानी बच्चे के साथ लेटी थी…

उलाहना देते हुए बोली “दीदी कहां हो आप ? शाम को हमारे बच्चे का फंक्शन है. और आप ऐसे मुंह उतार कर बैठी हो …चलो पहले आप तैयार हो जाइए अच्छे से…. फिर बच्चे को सम्भालिए …रुआंसी सी कविता तैयार होने उठी तो साथ आई महिला ने कहा “आज चलिये मैं आपको तैयार कर देती हूं…..कविता को बाद में पता चला कि वो ब्यूटिशियन थी…!

उसने उसका बहुत प्यारा मेकअप किया ….हल्का मेकअप ,आंखों में काजल, बालों में ढेर सारा गजरा, लाल बनारसी साड़ी ….कविता का सौंदर्य देखते ही बन रहा था किंतु आंखों में सुना पन साफ़ झलक रहा था.. कि मैं इतना तैयार होकर क्या करुँगी .. …गोद में बच्चा देवरानी के आया है …….
और मुझे यह लोग क्यों इतना सजा रहे हैं ..??

आखिर वो समय आ गया , जब प्रोग्राम शुरू होना था, सब हॉल में इकठ्ठे हुए जहां कार्यक्रम होना था…… !

मंझली देवरानी ने एक बार भी बच्चे को उसको हाथ तक नहीं लगाने दिया था , ना ही उसकी गोद में दिया …… ! बस रोने- रोने को हुई जा रही थी कविता …. तभी मंझले देवर सजल ने ने सबको शांत करते हुए कहा… “आज का यह आयोजन हम सबके लिए बहुत खास है , क्योकि यह आयोजन मेरे बड़े भैया और भाभी के प्रथम पुत्र रत्न की प्राप्ति के उपलक्ष्य में रखा गया है… आप सब श्रीमती कविता एवं दीपक जी को और उनके नवजात शिशु को अपना आशीर्वाद देकर हमें अनुग्रहित करें…।

और मंझली देवरानी कविता के पास आयी और बोली …..लो भी दीदी अब अपने बच्चे को गोद में ……कब से लिये लिए फिर रही हूं… थक गई हूँ भई मैं…!!!!…… उलाहना देते हुए बोली …

अब तो कविता के आंखों के आँसू झर- झर बहने लगे..दीपक की बांहों का सहारा और उन दोनों के बीच नन्हा- सा राजकुमार उसकी गोद में …..सब मानो गड्डमगड्ड हुए जा रहे थे…!!

उसको विश्वास नहीं हो रहा था ….क्या मैं सचमुच मां बन गयी???

तालियों का शोर सबके मुस्कुराते चेहरे, मंझले देवर देवरानी की पुलकित मुस्कान, यही तो कह रही थी…कि वो मां बन गयी…
परिवार में एकता और प्यार , ही सबसे बड़ी चीज है , जिस देवर देवरानी के लिए उन्होंने इतना कुछ किया,, दीपक ने बड़े भाई के सारे फ़र्ज़ निभाए…और उसने भी अपनों दोनों देवरो को अपने बच्चो कि तरह पाला…

दोनों देवरो ने भी कुछ कमी नहीं की…. मेरी यही कामना ही ,, की अगर हर घर में इसी तरह से भाइयो भाइयो में प्यार हो…..तो घर स्वर्ग से कम नहीं है … भगवान् करे.. हर घर में ऐसा ही प्यार प्रेम हो …मेरी यही कामना है …

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